जाबिर बिन हियान जिन्हें इतिहास का पहला रसायनशास्त्री कहा जाता है उसे पश्चिमी देश में गेबर (geber) के नाम से जाना जाता है।
इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता है , इनका जन्म 733 ईस्वी में तूस में हुई थी , जाबिर बिन हियान ने ही एसिड की खोज की इन्होने एक ऐसा एसिड भी बनाया जिससे सोने को भी पिघलाना मुमकिन था जाबिर बिन हियान पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पदार्थ को तीन भागों वनस्पति , पशु और , खनिज में विभाजित किया ।
इसी मुस्लिम साइंसदान ने रासायनिक यौगिकों जैसे – कार्बोनेट, आर्सेनिक, सल्फाइड की खोज की नमक के तेजाब, नाइट्रिक एसिड, शोरे के तेजाब, और फास्फोरस से जाबिर बिन हियान ने ही दुनिया को परिचित कराया।
जाबिर बिन हियान ने मोम जामा और खिजाब बनाने का तरीका खोजा और यह भी बताया कि वार्निश के द्वारा लोहे को जंग से बचाया जा सकता है |
जाबिर बिन हियान ने 200 से अधिक पुस्तकें रचना में लायीं जिनमें किताब अल रहमा, किताब-उल-तज्मिया, जैबक अल शर्की, किताब-उल-म्वाजीन अल सगीर को बहुत लोकप्रियता प्राप्त है जिनका अनुवाद विभिन्न भाषाओँ में हो चुका है।
इंटरनेट ने हमारे जीवन के मायने पूरी तरह से बदल दिए हैं। इसने हमारे जीवन के स्तर को ऊँचा कर दिया है और कई कार्यों को बहुत सरल और आसान बना दिया है। हालांकि इसने कई नुकसानों को भी जन्म दिया है। जैसे हर चीज के साथ होता है इंटरनेट का अधिक उपयोग हानिकारक भी हो सकता है। इंटरनेट के साथ कई नुकसान जुड़े हैं। इनमें से कुछ समय का व्यर्थ होना, धोखाधड़ी, स्पैमिंग और हैकिंग शामिल हैं।
इंटरनेट के नुकसान पर छोटे तथा बड़े निबंध (Long and Short Essay on Disadvantages of Internet in Hindi)
निबंध 1
प्रस्तावना
इंटरनेट कई फायदे प्रदान करता है लेकिन इसके द्वारा प्रदान किए जाने वाले नुकसानों की संख्या भी कम नहीं है। इंटरनेट के मुख्य नुकसान में से एक यह है कि यह विशेष रूप से छात्रों का ध्यान भटकाता है।
इंटरनेट से छात्रों का ध्यान भटकता है
इंटरनेट सूचना का एक विशाल स्रोत माना जाता है और इस तरह से यह छात्रों के लिए एक वरदान साबित हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी भी विषय या पाठ से संबंधित सारी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है। इसलिए यदि कोई छात्र किसी लेक्चर में उपस्थित नहीं होता या शिक्षक की गति से मिलान नहीं कर पाता है तो वह उन विषयों पर सहायता पाने के लिए इंटरनेट की मदद ले सकता है।
माता-पिता अपने बच्चों को इंटरनेट का उपयोग करने की अनुमति इसलिए देते हैं ताकि वे अपनी परीक्षाओं के लिए बेहतर तरीके से तैयार कर सकें पर कई छात्रों ने इसका दुरुपयोग किया है। चूंकि इंटरनेट मनोरंजन के प्रचुर स्रोत प्रदान करता है इसलिए इसका विरोध करना कठिन है। कई छात्र इंटरनेट पर विभिन्न प्रकार के वीडियो देखते हैं या मनोरंजक उद्देश्य के लिए ऑनलाइन गेम खेलते हैं पर वे जल्द ही इसके आदी हो जाते हैं और अपना समय इंटरनेट पर कुछ देखने/खेलने पर खर्च करते रहते हैं। यह समय की बहुत बड़ी बर्बादी है।
सोशल मीडिया ने समय की बर्बादी को बहुत बढ़ावा दिया है। किशोरावस्था की उम्र में बच्चे चकाचौंध और ग्लैमर की ओर आकर्षित होते हैं। वे अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों को सोशल मीडिया पर अपने फ़ोटो और पोस्ट दिखाने के बारे में चिंतित रहते हैं। इसके बाद वे लाइक्स और टिप्पणियों को देखने के लिए अपनी पोस्ट को दोबारा चेक करते रहते हैं। ऐसा करने में बहुत समय बर्बाद होता है। डेटिंग और चैटिंग ऐप्स भी पढ़ाई में बाधा साबित होती हैं।
निष्कर्ष
माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपने बच्चों को इंटरनेट एक्सेस प्रदान करने के साथ-साथ किस तरह बच्चे उसका उपयोग कर रहें हैं उस पर भी नज़र रखें। ऐसी साइटों, जो बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं हैं, उनको ब्लाक किया जाना उचित है। हालांकि माता-पिता आमतौर पर इस पहलू को हल्के में ले लेते हैं या ऐसे मामलों में ढील बरतते हैं। यह गलत है। माता-पिता को ऐसी साइटों पर नज़र रखनी चाहिए और उनके बच्चों की इंटरनेट गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे इंटरनेट का उपयोग केवल अच्छे कामों के लिए करें।
निबंध 2
प्रस्तावना
इंटरनेट मनोरंजन के कई स्रोतों की देन के लिए जाना जाता है हालांकि इंटरनेट ख़ाली समय को खर्च करने का एक अच्छा तरीका है पर यह हानिकारक भी हो सकता है। बहुत से लोग मनोरंजन के इन स्रोतों के इतने आदी हो जाते हैं कि वे अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
इंटरनेट काम की उत्पादकता कम करती है
गुज़रे ज़माने के कार्यालयों में इंट्रानेट कनेक्शन थे जिससे कर्मचारी केवल ईमेल साझा और व्यापार की योजनाओं पर चर्चा कर पाते थे। इन दिनों अधिकांश कार्यालयों में इंटरनेट की सुविधा दी जाती है। यहां तक कि अगर लोगों को अपने आधिकारिक लैपटॉप पर इंटरनेट की पहुंच नहीं है तो वे इसे अपने मोबाइल पर शुरू कर सकते हैं और जब भी चाहें इसका उपयोग कर सकते हैं।
इंटरनेट मनोरंजन के इतने अलग-अलग स्रोत प्रदान करता है कि इसको इस्तेमाल ना करने की नीयत को नियंत्रित करना मुश्किल है। लोग इन दिनों अपने मैसेंजर और सोशल मीडिया प्रोफाइल को हर थोड़ी-थोड़ी देर में यह चेक करते रहते हैं की कहीं किसी व्यक्ति उन्हें संदेश तो नहीं भेजा। इससे उनका ध्यान भटकता है और वे पूरी तरह से अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं हो पाते जिससे उनकी उत्पादकता कम हो जाती है।
जो लोग गेम खेलने के आदी हैं उनके अपने गेम से हर घंटे कुछ समय निकालने का प्रयास करना चाहिए। यह भी काम में एक बड़ी बाधा है। इतने सारी वेब सीरीज़ और वीडियो लगभग हर दिन इंटरनेट पर अपलोड हो रहे हैं और यदि आप उन्हें देखना शुरू कर देंगे तो आप उन्हें छोड़े बिना नहीं रह पाएंगे।
एक हालिया शोध से पता चलता है कि लोग अपने काम के समय इंटरनेट पर अपने समय का अधिकतर हिस्सा बिताते हैं। इस प्रकार काम की उत्पादकता कम होनी निश्चित है।
कार्य-जीवन असंतुलन
इन दिनों बाजार में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है यदि सेवा तुरन्त प्रदान नहीं की जाती है तो ग्राहक आपको छोड़ देंगे। इंटरनेट ने कहीं से भी दफ़्तर के ईमेल चेक करना और सॉफ्टवेयर का उपयोग करना आसान बना दिया है। इसलिए कई बार लोगों को घर जाने के बाद भी काम करना पड़ता है। यह व्यवसायों के लिए फायदेमंद है लेकिन कर्मचारियों के लिए नहीं क्योंकि ऐसा काम-जीवन में असंतुलन पैदा करता है।
दूसरा इंटरनेट पर हर समय की जाने वाली गतिविधियों के कारण कामकाज में कमी आई है इसलिए ज्यादातर लोग अपनी समयसीमा से पहले दिए गए काम को पूरा करने के लिए कार्यालय से लौट उसे करते हैं। अपने परिवार के साथ बिताए जाने वाला समय वे लैपटॉप पर खर्च करते हैं। वे अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के बीच संतुलन को बनाए रखने में असमर्थ हैं जो परिवारों के बीच संघर्ष का एक कारण बनता जा रहा है।
निष्कर्ष
इंटरनेट व्यवसाय को बढ़ाने, उसे बढ़ावा देने और पेशेवर रूप से विकसित होना एक महान मंच है। हमें इससे विचलित होने की बजाए दिए गए काम के उपयोग के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
निबंध 3 (500 शब्द)
प्रस्तावना
इंटरनेट आजकल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। आजकल परिवार को इक्कठा करने से लेकर बिजली के बिलों का भुगतान करने तक सब कुछ इंटरनेट के उपयोग के साथ किया जा रहा है। हालांकि इसके कई फायदे देखने को मिले है लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं।
इंटरनेट-स्वास्थ्य संबंधी समस्याओंकाकारण
ज़रूरत से ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल की वजह से कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं:
माइग्रेन
घंटों तक मोबाइल या लैपटॉप पर इंटरनेट का उपयोग करने से माइग्रेन हो सकता है। कई इंटरनेट उपयोगकर्ता इस समस्या की शिकायत करते हैं और उन्हें अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर बिताए समय को कम करने की सलाह दी जाती है लेकिन इस लत से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है। इस प्रकार लगातार सिरदर्द और माइग्रेन की शिकायत होना आम है।
नेत्र दृष्टि पर प्रभाव
एक बात तो साफ़ ज़ाहिर है कि जितना आप इंटरनेट सर्फ करने के लिए स्क्रीन को देखते हैं उतना ही आपकी आंखों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसा उन लोगों में विशेष रूप से आम है जो बिस्तर पर अपने मोबाइल पर इंटरनेट सर्फ करते हैं।
पीठ दर्द
कुर्सी पर बैठकर फिल्में देखना या लगातार ऑनलाइन गेम खेलना बुरी लत हो सकती है। अगर आपको ये आदतें लग जाती हैं तो इन्हें रोकना मुश्किल हो सकता है। बहुत से लोग इन अनुभवों का आनंद लेने के लिए घंटों तक बैठते हैं और इसी वजह से उनकी पीठ में दर्द होता है।
वजनबढ़ना
बच्चे इन दिनों अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलने की बजाए या तो घर पर रहकर ऑनलाइन गेम खेलना पसंद करते हैं या इंटरनेट पर हर समय वीडियो देखते रहते हैं। वयस्कों के साथ ऐसा ही मामला है। बाहरी गतिविधियों में सामाजिक रूप से शामिल होने की बजाए वे इंटरनेट पर समय बिताना पसंद करते हैं। शारीरिक गतिविधि की कमी ने लोगों में वजन वृद्धि की समस्या को जन्म दिया है। इस तरह की जीवनशैली से कई लोगों में मोटापे की समस्या उत्पन्न हो गई है।
सोने मे परेशानी
लोग इन दिनों अपने फोन को या तो तकिये के नीचे रखकर सोते हैं या साइड में रखकर सोते हैं। मोबाइल में बजी छोटी सी बीप की आवाज़ सुनकर भी लोग उठ जाते हैं और हर मिनट उन्हें अपने संदेश को जांचने की तीव्र इच्छा रहती है। सोते समय मोबाइल का इस्तेमाल करना सोने की प्राकृतिक प्रक्रिया को रोक सकता है और सोने के विकारों का कारण बन सकता है।
डिप्रेशन
दूसरों के मज़े की तस्वीरों और पोस्ट को देखकर हीनता की भावना पैदा हो सकती है। लोग इन दिनों खुद की इंटरनेट पर झूठी छवि फैला रहे हैं ताकि बड़ी संख्या में दूसरों का ध्यान आकर्षित किया जा सके। जो लोग एक साधारण जीवन जी रहे हैं वे खुद को कमतर और अलग-थलग महसूस करते हैं क्योंकि वे अक्सर उन लोगों को देखते हैं जो हर समय जश्न मनाते हैं और मज़े करते हैं। इंटरनेट ने परिवार के सदस्यों के बीच दूरी भी बनाई है। यह सब अवसाद को जन्म देता है।
रिश्ते पर नकारात्मक प्रभाव
इंटरनेट ने दूर देशों में रहने वाले लोगों की दूरी को कम कर दिया है पर वही साथ में नज़दीक रहने वाले लोगों को भी दूर कर दिया है। लोग अपने दूर के मित्रों और रिश्तेदारों के साथ जुड़ने और उन्हें सन्देश भेजने में इतने तल्लीन हो गए हैं कि वे अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों की ओर ध्यान देना भूल गए हैं।
सोशल मीडिया साइटों, मैसेंजर और डेटिंग एप्लिकेशन ने रिश्तों में धोखा को जन्म दिया है। इसने दम्पतियों के बीच झगड़ों को बढ़ावा दिया है जिसका उनके बच्चों और परिवार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष
हर चीज़ की अति बुरी है और इंटरनेट इसका कोई अपवाद नहीं है। इंटरनेट के ज्यादा उपयोग का किसी व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इससे पारिवारिक संबंध और पारिवारिक जीवन भी नष्ट हो सकता है। इसलिए हम सब को इस बात का ध्यान देना चाहिए।
निबंध 4 (600 शब्द)
प्रस्तावना
इंटरनेट कई लाभ प्रदान करता है। इसने हमारी ज़िंदगी को आरामदायक बना दिया है तथा हमारे जीवन स्तर को भी बढ़ाया है। हर काम इन दिनों इंटरनेट के माध्यम से किया जा सकता है चाहे वह किसी टिकट को बुकिंग करना हो या किसी प्रियजन को पैसे भेजने का हो या फिर लंबी दूरी के संबंध को बनाए रखने का हो। हालांकि इसके नकारात्मक पक्ष भी है। इंटरनेट तनाव, अवसाद, उत्पादकता और कई अधिक समस्याओं का कारण बन सकता है।
यहां इंटरनेट के विभिन्न नुकसान पर एक संक्षिप्त नज़र डाली गई है:
काम में बाधा
आप सभी इस बात से ज़रूर सहमत होंगे कि इंटरनेट काम में बाधा का कारण है। यह एक प्रकार से नशे की लत है तथा यह काम से ध्यान भी भटकाता है। चाहे आप अपनी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे एक छात्र हों, एक ऑफिस कर्मचारी हो, बिजनेस चलाते हो या फिर गृहणी हो आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि इंटरनेट आपका बहुत सारा समय व्यर्थ कर देता है। उस समय का उपयोग उत्पादक कार्यों में किया जा सकता है। सोशल मीडिया के आगमन ने इस लत को और बढ़ा दिया है। जो लोग ऑनलाइन गेम खेलते हैं वे हर समय इंटरनेट से चिपके रहते हैं।
हैकिंग
ईमेल खातों, बैंक खातों और लोगों के मोबाइल से किसी की निजी जानकारी निकालने के लिए हैंकिंग इन दिनों काफी सामान्य हैं। यह बड़ी चिंता का कारण बन गया है। हैकिंग की वजह से लोग अपने व्यक्तिगत रिश्तों में व्यावसायिक नुकसान और तनाव का सामना करते हैं।
व्यक्तिगत जानकारी चुराना
प्रत्येक व्यक्ति ने इंटरनेट पर अपनी प्रोफ़ाइल बना रखी है। सोशल मीडिया पर हर चीज के बारे में सब कुछ बताना एक ऐसी प्रवृत्ति बन गई है है। लोग दूसरों को दिखाने के लिए ऐसा करते हैं पर वास्तव में उन्हें इससे परेशानी हो सकती है। ऐसे भी लोग हैं जो आपकी प्रोफाइल को देखकर आपकी निज़ी ज़िंदगी के बारे में पता लगाते हैं कि आप क्या कर रहे हैं और आपकी व्यक्तिगत जानकारी को चुरा लेते हैं। इसने अपहरण और ब्लैकमेलिंग जैसे अपराधों को जन्म दिया है।
बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव
बच्चे इंटरनेट के माध्यम से लगभग हर चीज़ तक पहुँच जाते हैं। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को इंटरनेट कनेक्शन ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रदान करते हैं ताकि वे अपनी परीक्षाओं के लिए बेहतर तैयार कर सकें लेकिन बच्चे गेमिंग, सोशल मीडिया और मनोरंजन के अन्य स्रोतों के लिए अक्सर इंटरनेट का इस्तेमाल करता हैं। कई बार बच्चे अश्लील और अन्य सामान भी देखते हुए पाए जाते हैं जो उनके लिए अच्छा नहीं है।
स्पैमिंग
व्यवसायों के प्रचार के लिए इंटरनेट का उपयोग किया जाता है। हालांकि यह व्यवसायों को बढ़ावा देने और उनका विस्तार करने का एक अच्छा माध्यम है लेकिन यह उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द भी साबित हो सकता है। कई व्यवसाय अपने उत्पादों और सेवाओं के विपणन में लिप्त हैं जिससे उनके द्वारा हमारे इनबॉक्स में कई ईमेल के साथ स्पैमिंग सन्देश भेज दिए जाते हैं। कई बार महत्वपूर्ण ईमेल स्पैमिंग की वजह से मिट जाते हैं।
ज्यादा खर्चा
जिस तरह से हम खरीदारी करते हैं ऑनलाइन शॉपिंग ने उसे आसान कर दिया है। हम अलग-अलग चीजों की तलाश में खरीदारी करने के लिए समय को बर्बाद करने की आवश्यकता नहीं है। हमें जिस चीज की आवश्यकता है वह इंटरनेट पर उपलब्ध है। आप चीजों की एक विस्तृत विविधता के माध्यम से उसे इंटरनेट पर ढूंढ सकते हैं और उन्हें कुछ ही सेकंडो में व्यवस्थित कर सकते हैं। हालांकि इस तरह हम अक्सर हमारी आवश्यकता से अधिक खरीदकर पैसा खर्च कर देते हैं। कई ऑनलाइन रिटेलर सुविधा शुल्क और अन्य छिपे हुए शुल्क भी वसूल करते हैं जिसका हमें बाद में पता चलता है। ये सभी खर्च ज्यादा खर्चा करवाते हैं।
शारीरिकगतिविधिकीहानि
लोग इन दिनों ऑनलाइन वीडियो देखने, ऑनलाइन गेम खेलने और लोगों से ऑनलाइन जुड़ने में इतने तल्लीन हैं कि वे बाहर जाने और बाहरी गतिविधियों में शामिल होने के महत्व की अनदेखी कर देते हैं। इससे मोटापा, माइग्रेन और नींद की बीमारी जैसी कई शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। बच्चों के समुचित विकास और प्रगति के लिए बाहर खेलना जरूरी है लेकिन इन दिनों वे ऑनलाइन गेम्स खेलना पसंद करते हैं।
निष्कर्ष
इंटरनेट के कई नुकसान हैं। इन सभी नुकसानों में से सबसे बड़ी बात यह है कि उसने लोगों को एक दूसरे से अलग-थलग कर दिया है। हम सभी अपने मोबाइल में इतने मग्न हो गए हैं कि हम अपने आस-पास के लोगों की जरूरतों को अनदेखी कर देते हैं। इंटरनेट की वजह से बच्चों और बुजुर्ग, जिनका सबसे अधिक ख्याल रखने की आवश्यकता है, की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यह सही समय है कि हमें अपने इंटरनेट उपयोग को सीमित करना चाहिए और स्वस्थ जीवन जीना चाहिए।
इस आधुनिक दुनिया में एक देश के लिए दूसरे देशों से मजबूत, ताकतवर और अच्छी तरह से विकसित होने के लिए विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नए आविष्कार करना बहुत आवश्यक है। इस प्रतियोगी समाज में, हमें आगे बढ़ने और जीवन में सफल व्यक्ति बनने के लिए अधिक तकनीकों की जरूरत है। आज मनुष्य ने विज्ञान और तकनीकी में बहुत विकास कर लिया है। अब तकनीकी के बिना रह पाना नामुमकिन हो गया है। इसने हमारे जीवन को सरल, आसान और सुविधाजनक बना दिया है।
विज्ञान और तकनीकी पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Science and Technology in Hindi)
निबंध 1 (300 शब्द)
प्रस्तावना
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, हम विज्ञान और तकनीकी के समय में रह रहे हैं। हम सभी का जीवन वैज्ञानिक आविष्कारों और आधुनिक समय की तकनीकों पर बहुत अधिक निर्भर है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने लोगों के जीवन को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है। इसने जीवन को आसान, सरल और तेज बना दिया है। नए युग में, विज्ञान के विकास ने हमें बैलगाड़ी की सवारी से हवाई यात्रा की सुविधा तक पहुंचा दिया है।
आधुनिक तकनीकी
विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधुनिकरण के हर पहलू को प्रत्येक राष्ट्र में लागू किया गया है। जीवन के हरेक क्षेत्र को सही ढंग से संचालित करने और लगभग सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए आधुनिक उपकरणों की खोज की गई है। इसे चिकित्सा, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, ऊर्जा निर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में लागू किए बिना सभी लाभों को प्राप्त करना संभव नहीं था। यदि हम विज्ञान में प्रगति नहीं करते तो आज भी हमारा जीवन पहले की तरह दुष्कर और कठिन होता। नवीन आविष्कारों ने हमें बहुत लाभ पहुँचाया है। हमारे चारों तरफ अनेक तकनीकी मौजूद है।
मोबाइल फोन, टीवी, कम्प्यूटर, इंटरनेट, ओवन, फ्रिज, वाशिंग मशीन, पानी निकालने वाली मोटर, मोटर साइकिल, जहाज, ट्रेन, बस, यातायात के साधन, सभी कुछ आधुनिक तकनीकी की सहायता से सम्भव हो सका है। नई तरह की दवाइयां, चिकित्सा उपकरणों की सहायता से अब जटिल रोगों का इलाज भी सम्भव हो गया है। इस तरह से हम कह सकते है कि आज के समय में आधुनिक तकनीकी के बिना हमारा जीवन भी संभव नही है।
निष्कर्ष
हमने अपने दैनिक जीवन में जो कुछ भी सुधार देखे हैं, वो सब केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के कारण है। देश के उचित विकास और वृद्धि के लिए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ चलना बहुत आवश्यक है। गाँव अब कस्बों के रुप में और कस्बे शहरों के रुप में विकसित हो रहे हैं और इस प्रकार से अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में भी काफी विकास देखने को मिला है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कारण ही आज के समय में हमारा देश इतने तेजी से विकास कर पा रहा है।
निबंध 2 (400 शब्द)
प्रस्तावना
समाज में विज्ञान और तकनीकी वाद-विवाद का विषय बन गए हैं। एक तरफ तो यह आधुनिक जीवन के लिए आवश्यक है, जहाँ अन्य देश तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर विकास कर रहे हैं, वहीं यह अन्य देशों के लिए भी आवश्यक हो जाता है कि, वे भी इसी तरह से भविष्य में सुरक्षा के लिए ताकतवर और अच्छी तरह से विकसित होने के लिए निरंतर वैज्ञानिक विकास करते रहे। ये विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही है, जिन्होंने अन्य कमजोर देशों को भी विकसित और ताकतवर बनने में मदद की है।
मानवता के भले के लिए और जीवन के सुधार के लिए हमें हमेशा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद लेनी होगी। यदि हम तकनीकों की मदद नहीं लेते; जैसे- कम्प्यूटर, इंटरनेट, बिजली, आदि तो हम भविष्य में कभी भी आर्थिक रुप से मजबूत नहीं होंगे और हमेशा पिछड़े हुए ही रहेंगे यहाँ तक कि इसके बिना हम आज के इस प्रतियोगी और तकनीकी संसार में जीवित भी नहीं रह सकते हैं।
प्रौद्योगिकियों के उदाहरण
चिकित्सा, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, खेल, नौकरियाँ, पर्यटन आदि विज्ञान और प्रौद्योगिकियों के उदाहरण है। ये सभी प्रकार की उन्नति हमें दिखाती हैं कि, कैसे दोनों हमारे जीवन के लिए समान रुप से आवश्यक है। हम अपनी जीवन-शैली में प्राचीन समय के जीवन के तरीकों और आधुनिक समय के जीवन के तरीकों की तुलना करके स्पष्ट रुप में अन्तर देख सकते हैं।
चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च स्तर की वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति ने बहुत सी खतरनाक बीमारियों के इलाज को सरल बना दिया है जो पहले संभव नहीं था। तकनीकी ने बीमारीयों का इलाज दवाइयों और आपरेशन के माध्यम से करने में चिकित्सकों की प्रभावी ढंग से मदद करने के साथ ही भंयकर बीमारियों, जैसे- कैंसर, एड्स, मधुमेह (डायबीटिज़), एलज़ाइमर, लकवा आदि के टीकों के शोध में भी काफी मदद की है।
भारत अब विज्ञान और उन्नत तकनीकी के क्षेत्र में अपने नए आविष्कारों के माध्यम से तेजी से विकास करने वाला देश बन गया है। विज्ञान और तकनीकी आधुनिक लोगों की आवश्यकता और जरूरतों को पूरा करने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
निष्कर्ष
आजादी के बाद, देश के राष्ट्रीय विकास के लिए हमारे देश ने विज्ञान के प्रसार और विस्तार को बढ़ावा देना शुरु किया है। सरकार द्वारा बनाई गई विभिन्न नीतियों ने पूरे देश में आत्मनिर्भरता और टिकाऊ विकास और वृद्धि पर जोर दिया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी दोनों ने ही देश में असाधारण ढंग से आर्थिक विकास और सामाजिक विकास को उन्नत करने का कार्य किया है।
निबंध 3 (500 शब्द)
प्रस्तावना
विज्ञान और तकनीकी लोगों के जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह सिंधु घाटी सभ्यता से ही हमारे जीवन का एक महत्वरपूर्ण हिस्सा रहा है। ऐसा पाया गया है कि, आग और पहिये की खोज करने के लिए लगभग पाँच आविष्कार किए गए थे। दोनों ही आविष्कारों को वर्तमान समय के सभी तकनीकी आविष्कारों का जनक कहा जाता है। आग के आविष्कार के माध्यम से लोगों ने ऊर्जा की शक्ति के बारे में पहली बार जाना था। तभी से, लोगों में रुचि बढ़ी और उन्होंने जीवन-शैली को सरल और आसान बनाने के लिए बहुत से साधनों पर शोध के और अधिक कठिन प्रयास करने शुरु कर दिए।
आविष्कार
भारत प्राचीन समय से ही पूरे संसार में सबसे अधिक प्रसिद्ध देश है हालांकि, इसकी गुलामी के बाद, इसने अपनी पहचान और ताकत को खो दिया था। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, इसने भीड़ में अपनी खोई हुई ताकत और पहचान को दुबारा से प्राप्त करना शुरु कर दिया है। वो विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही थे, जिन्होंने पूरे विश्व में भारत को अपनी वास्तविक पहचान को प्रदान किया है। भारत अब विज्ञान और उन्नत तकनीकी के क्षेत्र में अपने नए आविष्कारों के माध्यम से तेजी से विकास करने वाला देश बन गया है। विज्ञान और तकनीकी आधुनिक लोगों की आवश्यकता और जरूरतों को पूरा करने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक
तकनीकी में उन्नति के कुछ उदाहरण, रेलवे प्रणाली की स्थापना, मैट्रो की स्थापना, रेलवे आरक्षण प्रणाली, इंटरनेट, सुपर कम्प्यूटर, मोबाइल, स्मार्ट फोन, लगभग सभी क्षेत्रों में लोगों की ऑनलाइन पहुँच, आदि है। भारत की सरकार बेहतर तकनीकी विकास के साथ ही देश में विकास के लिए अंतरिक्ष संगठन, और कई शैक्षणिक संस्थाओं (विज्ञान में उन्नति के लिए भारतीय संगठन) में अधिक अवसरों का निर्माण कर रही है। भारत के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिक जिन्होंने भारत में (विभिन्न क्षेत्रों में अपने उल्लेखनीय वैज्ञानिक शोध के माध्यम से) तकनीकी उन्नति को संभव बना दिया, उनमें से कुछ सर जे.सी. बोस, एस.एन. बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जे. भाभा, श्रीनिवास रामानुजन, परमाणु ऊर्जा के जनक डॉ. हर गोबिंद सिंह खुराना, विक्रम साराभाई आदि है।
आधुनिक तकनीकी का महत्व
विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में विकास किसी भी देश के लोगों के लिए दूसरे देश के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए बहुत अधिक आवश्यक है। विज्ञान और तकनीकी का विकास तथ्यों के विश्लेषण और उचित समझ पर निर्भर करता है। प्रौद्योगिकी का विकास सही दिशा में विभिन्न वैज्ञानिक ज्ञान के आवेदन के तरीकों पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष
विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधुनिकरण के हर पहलू को प्रत्येक राष्ट्र में लागू किया गया है। जीवन के हरेक क्षेत्र को सही ढंग से संचालित करने और लगभग सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए आधुनिक उपकरणों की खोज की गई है। इसे चिकित्सा, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, ऊर्जा निर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में लागू किए बिना सभी लाभों को प्राप्त करना संभव नहीं था।
निबंध 4 (600 शब्द)
प्रस्तावना
विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधुनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसने मानव सभ्यता को गहराई में जाकर प्रभावित किया है। आधुनिक जीवन में तकनीकी उन्नति ने पूरे संसार में हमें बहुत अधिक उल्लेखनीय अंतर्दृष्टि दी है। वैज्ञानिक क्रान्तियों ने 20वीं शताब्दी में अपनी पूरी गति पकड़ी और 21वीं सदी में और भी अधिक उन्नत हो गई। हमने नए तरीके और लोगों के भले के लिए सभी व्यवस्थाओं के साथ नई सदी में प्रवेश किया है। आधुनिक संस्कृति और सभ्यता विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निर्भर हो गई है क्योंकि वे लोगों की जरूरत और आवश्यकता के अनुसार जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं।
भारतीय आर्थिक स्थिति में सुधार
भारत रचनात्मक और मूलभूत वैज्ञानिक विकास और सभी दृष्टिकोण में दुनिया भर में का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। सभी महान वैज्ञानिक खोजो और तकनीकी उपलब्धियों ने हमारे देश में भारतीय आर्थिक स्थिति को सुधारा है और तकनीकी रूप से उन्नत वातावरण को विकसित करने के लिए नई पीढ़ी के लिए कई नए तरीकों का निर्माण किया है। गणित, आर्किटेक्चर, रसायन विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, धातु कर्म, प्राकृतिक दर्शन, भौतिक विज्ञान, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, फार्मास्यूटिकल्स, खगोल भौतिकी, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, आवेदन, रक्षा आदि के क्षेत्र में कई नए वैज्ञानिक शोध और विकास संभव हो गए हैं।
सकारात्मक परिवर्तन
शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध, विचारों और तकनीकों का परिचय नई पीढ़ी में बड़े स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन लाया है और उन्हें अपने स्वयं के हित में काम करने के लिए नए अवसरों की विविधता प्रदान की है। भारत में आधुनिक विज्ञान को वैज्ञानिकों ने अपने निरंतर और कठिन प्रयासों के द्वारा पुनः जीवंत बना दिया है। वास्तव में वह भारत के महान वैज्ञानिक ही है, जिन्होंने हमारे देश के तेजी से तरक्की को संभव किया है।
आजादी के बाद, देश के राष्ट्रीय विकास के लिए हमारे देश ने विज्ञान के प्रसार और विस्तार को बढ़ावा देना शुरु किया है। सरकार द्वारा बनाई गई विभिन्न नीतियों ने पूरे देश में आत्मनिर्भरता और टिकाऊ विकास और वृद्धि पर जोर दिया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी दोनों ने ही देश में असाधारण ढंग से आर्थिक विकास और सामाजिक विकास पर असर डाला है।
देश के विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का योगदान
हमारे देश को स्वतंत्र हुए 70 साल हो गए है। इतने वर्षों में देश के विकास में विविध क्षेत्रों का योगदान रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसने देश को विकास की राह पर आगे बढ़ाने में अपना सबसे अधिक योगदान दिया है। असल में हमारे जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमें विज्ञान का दखल न हो। भारत के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिक जिन्होंने भारत को तकनीकी उन्नति प्रदान की है , उनमें से कुछ सर जे.सी. बोस, एस.एन. बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जे. भाभा, श्रीनिवास रामानुजन, परमाणु ऊर्जा के जनक डॉ. हर गोबिंद सिंह खुराना, विक्रम साराभाई आदि का नाम प्रमुख है।
निष्कर्ष
किसी भी क्षेत्र में तकनीकी विकास उस देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने का कार्य करता है। भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शक्ति में सुधार के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1942 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और 1940 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान के बोर्ड का निर्माण किया। देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर देने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान संस्थानों की एक श्रृंखला स्थापित की है, जोकि हमारे देश के वैज्ञानिक प्रगति में अपना अहम योगदान दे रही है।
आत्मा का वज़न' 21 ग्राम बताने वाला प्रयोग किसने और कैसे किया था
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प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि मरने के बाद इंसान एक लंबे सफ़र पर निकल पड़ता है. ये सफ़र बेहद मुश्किल होता है जिसमें वो सूर्य देवता (जिन्हें मिस्र के लोग रा कहते हैं) की नाव पर सवार होकर 'हॉल ऑफ़ डबल ट्रूथ' तक पहुंचता है.
किंवदंतियों के मुताबिक़, सच्चाई का पता लगाने वाले इस हॉल में आत्मा का लेखा-जोखा देखा जाता है और उसका फ़ैसला होता है.
यहां सच और न्याय की देवी की कलम के वज़न की तुलना इंसान के दिल के वज़न से की जाती है. प्राचीन मिस्र के लोगों का मानना था कि इंसान के सभी भले और बुरे कर्मों का हिसाब उसके दिल पर लिखा जाता है.
अगर इंसान ने सादा और निष्कपट जीवन बिताया है तो उसकी आत्मा का वज़न पंख की तरह कम होगा और उसे ओसिरिस के स्वर्ग में हमेशा के लिए जगह मिल जाएगी.
मिस्र की इस प्राचीन मान्यता की एक झलक 1907 में 'जर्नल ऑफ़ द अमरीकन सोसाइटी फ़ॉर साइकिक रीसर्च' में छपे एक शोध में मिली. 'हाइपोथेसिस ऑन द सबस्टेन्स ऑफ़ द सोल अलॉन्ग विद एक्सपेरिमेन्टल एविडेन्स फ़ॉर द एग्ज़िस्टेंस ऑफ़ सैड सब्जेक्ट' नाम के इस शोध में इंसान के मरने के बाद उसकी आत्मा से जुड़े प्रयोग पर चर्चा की गई थी.
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आत्मा का वज़न
इस शोध से जुड़ा एक लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में मार्च 1907 में छपा जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि डॉक्टरों को लगता है कि आत्मा का भी निश्चित वज़न होता है. इसमें डॉक्टर डंकन मैकडॉगल नाम के एक फ़िज़िशियन के प्रयोग के बारे में चर्चा थी.
1866 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जन्मे डॉक्टर डंकन बीस साल की उम्र में अमरीका के मैसाच्यूसेट आ गए थे. उन्होंने ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन से अपनी पढ़ाई पूरी की थी और अपने जीवन का अधिकतर वक्त हेवरिल शहर के एक चैरिटेबल हॉस्पिटल में लोगों का इलाज करते हुए बिताया.
उस अस्पताल के मालिक एक ऐसे कारोबारी थे जिनका व्यापार मुख्य रूप से चीन के साथ था. वो चीन से जो चीज़ें लाए थे, उनमें से एक महत्वपूर्ण चीज़ थी फ़ेयरबैंक्स का एक तराजू.
ये तराज़ू सबसे पहले 1830 में बनाया गया था और इसमें बड़ी चीज़ों का सटीक माप आसानी से लिया जा सकता था.
डॉक्टर डंकन जहां काम करते थे, वहां आए दिन वो लोगों की मौत देखते थे. अस्पताल में वज़न मापने की मशीन देखकर उनके दिमाग़ में इंसान की आत्मा का वज़न मापने का ख़याल आया.
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे लेख के अनुसार इस घटना के छह साल बाद शोध का विषय लोगों के सामने आया. ये था- "ये जानना कि इंसान के मरने के बाद जब उसकी आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो शरीर में उस कारण क्या बदलाव होता है?"
उनके शोध के विषय का नाता प्राचीन मिस्र के लोगों की मान्यता को साबित करना या फिर मिस्र के देवी-देवताओं के बारे में कुछ जानना कतई नहीं था लेकिन विषयवस्तु ज़रूर उसी प्राचीन मान्यता से मेल खाती थी.
आप समझ सकते हैं कि उन्होंने अपने शोध की शुरुआत ही इस बात से की कि मरने के बाद इंसान के शरीर से आत्मा अलग होती है. यानी वो आत्मा के होने या न होने पर कोई सवाल नहीं कर रहे थे. लेकिन उनके शोध के नतीजे में कहीं न कहीं इस बात को विज्ञान के स्तर पर मान्यता देने की संभावना ज़रूर थी.
डॉक्टर डंकन मैकडॉगल ने एक बेहद हल्के वज़न वाले फ्रेम का एक ख़ास तरीके का बिस्तर बनाया जिसे उन्होंने अस्पताल में मौजूद उस बड़े तराज़ू पर फिट किया. उन्होंने तराज़ू को इस तरह से बैलेंस किया कि वज़न में औंस (एक औंस क़रीब 28 ग्राम के बराबर होता है) से भी कम बदलाव को मापा जा सके.
जो लोग गंभीर रूप से बीमार होते थे या जिनके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती थी, उन्हें इस ख़ास बिस्तर पर लिटाया जाता था और उनके मरने की प्रक्रिया को क़रीब से देखा जाता था.
शरीर के वज़न में हो रहे किसी भी तरह के बदलाव को वो अपने नोट्स में लिखते रहते. इस दौरान वो ये मानते हुए वज़न का हिसाब भी करते रहते कि मरने पर शरीर में पानी, ख़ून, पसीने, मल-मूत्र या ऑक्सीजन, नाइट्रोजन के स्तर में भी बदलाव होंगे.
उनके इस शोध में उनके साथ चार और फ़िज़िशियन काम कर रहे थे और सभी इस आंकड़ों का अलग-अलग हिसाब रख रहे थे.
डॉक्टर डंकन ने दावा किया, "जब इंसान अपनी आख़िरी सांस लेता है तो उसके शरीर से आधा या सवा औंस वज़न कम हो जाता है."
डॉक्टर डंकन का कहना था, "जिस क्षण शरीर निष्क्रिय हो जाता है, उस क्षण में तराजू का स्केल तेज़ी से नीचे आ जाता है. ऐसा लगता है कि शरीर से अचानक कुछ निकल कर बाहर चला गया हो."
डॉक्टर डंकन के अनुसार उन्होंने ये प्रयोग 15 कुत्तों के साथ भी किया और पाया कि इसके नतीजे नकारात्मक थे. उनका कहना था "मौत के वक्त उनके शरीर के वज़न में कोई बदलाव नहीं देखा गया."
इस प्रयोग के नतीजे को उन्होंने इस तरह समझाया कि 'मौत के वक्त इंसान के शरीर के वज़न में बदलाव होता है क्योंकि उनके शरीर में आत्मा होती है लेकिन कुत्तों के शरीर में किसी तरह का बदलाव नहीं होता क्योंकि उनके शरीर में आत्मा होती ही नहीं.'
छह साल तक चले इस प्रयोग में कुल 6 मामलों पर ही शोध किया गया था. एक समस्या ये भी थी कि दो डॉक्टरों के जमा किए आंकड़ों को शोध में शामिल नहीं किया गया था. एक का कहना था, "हमारे स्केल (तराजू) पूरी तरह एडजस्ट नहीं हो पाए थे और हमारे काम को लेकर बाहरी लोग भी काफ़ी विरोध जता रहे थे."
वहीं दूसरे फ़िज़िशियन का कहना था, "ये जांच सटीक नहीं थी. एक मरीज़ की मौत बिस्तर पर लिटाए जाने के पांच मिनट के भीतर ही हो गई थी. जब उनकी मौत हुई मैं तब तक तराज़ू पूरी तरह एडजस्ट भी नहीं कर पाया था."
ऐसे में शोध का नतीजा केवल चार मरीज़ों यानी चार मामलों पर आधारित था. इसमें भी तीन मामलों में मौत के तुरंत बाद शरीर का वज़न पहले अचानक कम हुआ और फिर कुछ देर बाद बढ़ गया. चौथे मामले में शरीर का वज़न पहले अचानक कम हुआ फिर बढ़ा और एक बार फिर कम हो गया.
शोध से जुड़ा जांच का एक और महत्वपूर्ण मुद्दा ये था कि डॉक्टर डंकन और उनकी टीम पुख़्ता तौर पर ये नहीं बता पाई की मौत का सही वक्त क्या था.
सच कहा जाए तो इस शोध को लेकर जो चर्चा शुरू हुई, उसमें लोग दो खेमों में बंटे दिखने लगे. धर्म पर विश्वास करने वाले अमरीका के कुछ अख़बारों ने कहा कि शोध के इन नतीजों को नकारा नहीं जा सकता और ये शोध इस बात का सबूत है कि आत्मा का अस्तित्व है.
हालांकि, खुद डॉक्टर डंकन का कहना था कि वो इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि उनके शोध से कोई बात साबित हुई है. उनका कहना था कि उनका शोध केवल प्रारंभिक पड़ताल है और इस मामले में अधिक शोध की ज़रूरत है.
वैज्ञानिक समुदाय ने उनके शोध के नतीजों को मानने से इनकार ही नहीं किया बल्कि उनके प्रयोग की वैधता को मानने से भी इनकार कर दिया.
लेकिन डॉक्टर डंकन ने जिन छह लोगों पर शोध किया था उसमें से पहले के शरीर में आया बदलाव आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है.
इसी शोध के आधार पर अब भी कई लोग कहते हैं कि इंसान की आत्मा का वज़न तीन चौथाई औंस या फिर 21 ग्राम होता है. ये डॉक्टर डंकन के पहले सब्जेक्ट के शरीर में मौत के बाद आया बदलाव था.
कुछ लोगों के लिए मैरी बोनापार्ट महिला कामुकता के बारे में अध्ययन करने वाला अग्रणी चेहरा थीं, जबकि कुछ लोगों के लिए वो एक धनी महिला थीं जिनका संपर्क उस वक़्त के रसूख़दार लोगों के साथ था.
लेकिन सच ये है कि फ्रांस के पूर्व सम्राट नेपोलियन प्रथम की भतीजी और ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा प्रिंस फ़िलिप की चाची मैरी बोनापार्ट (1882 से 1962) पर ज़्यादातर इतिहासकारों की नज़र नहीं गई.
ख़ुद राजकुमारी रहीं मैरी बोनापार्ट की दिलचस्पी सेक्स के दौरान महिलाओं में चरमसुख और उनके मानसिक स्थिति के विश्लेषण करने में थी. इसलिए वो एक छात्र बनीं और समय आने पर उन्होंने सिग्मंड फ्रॉयड को भी बचाया. लेकिन इस सबसे पहले वो एक ‘आज़ाद ख़याल’ महिला थीं.
उनके जीवनी लिखने वालों के अनुसार वो एक दिलचस्प व्यक्तित्व की महिला थीं जो वैज्ञानिकों के बीच भी उतनी ही सहजता से खड़ी हो सकती थीं जितना की राजघराने के सदस्यों के साथ. वो हमेशा सेक्स में महिलाओं के सुख से जुड़े सवालों के उत्तर खोजती रहीं.
इमेज कॉपीरइट Image captionमैरी बोनापार्ट
राजकुमारी मैरी बोनापार्ट
मैरी बोनापार्ट का जन्म पेरिस के एक जानेमाने और धनी परिवार में हुआ था. वो मैरी-फ़ेलिक्स और फ्रांस के राजकुमार रोलैंड नेपोलियन बोनापार्ट की बेटी थीं.
उनके दादा फ्रांस्वा ब्लांक एक जानेमाने व्यवसायी थे और कसीनो मॉन्टे कार्लो के संस्थापक थे.
लेकिन मैरी का जीवन बचपन से ही त्रासदी भरा रहा. जन्म के समय वो मरते-मरते बचीं. उनके दुनिया में आने के एक महीने बाद उनकी मां ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
उनका बचपन परेशानी भरा रहा और वो अकेलेपन से जूझती रहीं.
न उनके कोई दोस्त थे और न ही भाई-बहन. ऐसे में वो अपने पिता के साथ अधिक वक़्त बिताती थीं जो मानवविज्ञानी और भूगोलवेत्ता थे. वो अपनी दादी से ख़ौफ़ खाती थीं.
छोटी उम्र से ही वो विज्ञान, साहित्य और लेखन के साथ-साथ अपने शरीर से जुड़े कई सवाल पूछती रहतीं.
एक दिन मैरी का ध्यान रखने वाली महिलाओं में से एक ‘मिमउ’ ने उन्हें हस्तमैथुन करते हुए देख लिया.
1952 में मैरी ने ख़ुद अपनी डायरी में इस घटना के बारे में लिखा है कि उन्होंने कहा, “ये पाप है, ये स्वीकार्य नहीं है. अगर तुमने ये किया तो तुम मर जाओगी.”
अपने लेख ‘द थ्योरी ऑफ़ फ़ीमेल सेक्शुआलिटी ऑफ़ मैरी बोनापार्ट: फ़ैन्टसी एंड बायोलॉजी’ में नेली थॉम्पसन लिखती हैं, ”अपनी डायरी में बोनापार्ट ने दावा किया है कि आठ या नौ साल की उम्र में उन्होंने ख़ुद से हस्तमैथुन करना छोड़ दिया क्योंकि उन्हें मिमउ की चेतावनी के बाद डर लगा कि कामुकता में आनंद खोजने से उनकी मौत हो जाएगी.”
कम उम्र से ही विद्रोह के बीज मैरी में पड़ चुके थे और वो इस बात को मानने को तैयार नहीं थीं कि महिलाओं को किसी की अधीनता स्वीकार करनी चाहिए.
किशोरावस्था में उन्होंने अंग्रेज़ी और जर्मन भाषा की पढ़ाई शुरू की, लेकिन उनकी दादी और उनके पिता ने अचानक उन्हें आगे की परीक्षा देने से रोक दिया.
इमेज कॉपीरइटImage captionमैरी बोनापार्ट
थॉम्पसन के अनुसार इसके बाद मैरी ने इसके लिए ख़ुद को दोष देते हुए लिखा, "मेरा नाम, मेरा रैंक, मेरा भाग्य! ख़ास तौर पर मेरे सेक्स पर धिक्कार है! क्योंकि अगर मैं लड़का होती, तो वो लोग मुझे कोशिश करने से नहीं रोकते!!"
उस दौर में महिला और पुरुष को जेंडर के आधार पर नहीं बल्कि सेक्स के आधार पर देखा जाता था.
बीस साल की उम्र में क़दम रखने से पहले मैरी में सेक्स को लेकर अलग ख़याल थे, उस वक़्त उनका अफ़ेयर अपने पिता के एक सहायक के साथ था जो शादीशुदा थे.
उनके लिए ये अफ़ेयर एक तरह का स्कैंडल बन गया जो ब्लैकमेलिंग और अपमान के साथ ख़त्म हुआ.
मैरी के पिता ने सोचा कि वो उनकी मुलाक़ात ग्रीस और डेनमार्क के राजकुमार प्रिंस जॉर्ज (1869 से 1957) से करवाएंगे, जिन्हें वो अपने दामाद के रूप में देखना चाहते थे. प्रिंस जॉर्ज मैरी से 13 साल बड़े थे.
मैरी उनसे शादी के लिए राज़ी हो गईं जिसके बाद 12 दिसंबर 1907 में एथेन्स में दोनों का शादी हुई.
दोनों के दो बेटे हुए, प्रिंस यूजीन और प्रिंस पीटर, लेकिन दोनों की शादी में सब कुछ ठीक नहीं था.
देखा जाए तो दोनों की शादी पचास साल चली लेकिन मैरी को जल्दी पता चल गया था कि भावनात्मक तौर पर उनके पति उनसे नहीं बल्कि अपने चाचा डेनमार्क के राजकुमार प्रिंस व्लादिमीर से जुड़े हैं.
मैरी अब तक अपने प्रेम को ख़ुद तलाशने को लेकर फ़ैसला कर चुकी थीं, उन्हें डर था कि उनका जीवन उदासीन न हो जाए. ऐसे में अपने जीवन की परेशानी को हल करने का रास्ता उन्होंने पढ़ाई में तलाशना शुरू किया.
इमेज कॉपीरइट Image captionमैरी बोनापार्ट अपने पति के साथ
महिला कामुकता के बारे में अध्ययन
ज्ञान पाने की मैरी बोनापार्ट की भूख और महिला की कामुकता और सुख को समझने की उनकी इच्छा ने उनके अध्ययन को आगे बढ़ाया.
साल 1924 में उन्होंने एई नरजानी के छद्मनाम से एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था, “नोट्स ऑन द एनाटोमिकल कॉज़ेज़ ऑफ़ फ़्रिजिडिटी इन वीमेन” यानी महिलाओं में उदासीनता के शारीरिक कारण.
अमरीका के जॉर्जिया में मौजूद इमोरी यूनिवर्सिटी में बिहेवोरियल न्यूरोएंडोक्राइनोलॉजी के प्रोफ़ेसर किम वॉलेन कहते हैं, “वो इस बात से परेशान थीं कि किसी से साथ सेक्स करने पर उन्हें कभी चरमसुख नहीं मिला. वो ये मानने के लिए तैयार नहीं थीं कि महिलाओं को ख़ुद हस्तमैथुन से ही चरमसुख मिल सकता है.”
मैरी बोनापार्ट का मानना था कि किसी व्यक्ति के साथ सेक्स करने पर भी अगर महिला को चरमसुख नहीं मिल पा रहा है तो ये एक शारीरिक समस्या हो सकती है.
उन्होंने इसे समझने के लिए एक थ्योरी बनाई- महिला के वजाइना और क्लिटोरिस के बीच दूरी जितनी कम होगी सेक्स के दौरान चरमसुख पाने की उसकी संभावना उतनी अधिक होगी.
अपने इस थीसिस पर काम करने के लिए उन्होंने 1920 के पेरिस में 240 महिलाओं के वजाइना और क्लिटोरिस के बीच की दूरी का नाप लिया.
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प्रोफ़ेसर वॉलेन ने डॉक्टर एलिज़ाबेथ लॉयड के साथ मिलकर मैरी बोनापार्ट के शोध का अध्ययन किया है. वो कहते हैं, “उनके प्रकाशित शोध के अनुसार, ये डेटा व्यवस्थित तरीक़े से एकत्र नहीं किया गया था बल्कि वास्तविक रूप में उस वक़्त इकट्ठा किया गया जब महिलाएं अपने डॉक्टर से मुलाक़ात करने गई थीं.”
दोनों जानकारों के मुताबिक़ ”वजाइना की ओपनिंग से क्लिटोरिस की दूरी के आधार पर मैरी ने सैम्पल को तीन हिस्सों में बांटा. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि इस आधार तक वो कैसे पहुंचीं.”
इंडियाना यूनिवर्सिटी के हिस्ट्री एंड फिलोसॉफ़ी ऑफ़ साइंस विभाग में प्रोफ़ेसर डॉक्टर लॉयड बताती हैं, "मैरी बोनापार्ट का हाइपोथिसिस भी दिलचस्प था. उन्होंने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया कि महिलाओं के शरीर की रचना अलग तरीक़े से हुई है और इस कारण वो सेक्स के दौरान अलग-अलग प्रतिक्रियाओं का अनुभव करती हैं."
हालांकि वो कहती हैं कि मैरी ने अपनी थ्योरी में ज़्यादातर ज़ोर महिलाओं के शरीर की बनावट पर दिया है और मानसिक तौर पर महिलाओं की परिपक्वता को नज़रअंदाज़ कर दिया है.
महिलाओं के मानसिक तौर पर बीमार होने, उदासीन होने जैसे उस दौर के नकारात्मक शब्दों के प्रयोग जैसे पहलुओं को भी उन्होंने छोड़ दिया है.
अपने हाइपोथिसिस के आधार पर मैरी ये मानने लगी थीं कि अगर महिला अपना ऑपरेशन करवा कर वजाइना और क्लिटोरिस की दूरी कम कर ले तो उसे सेक्स के दौरान चरमसुख मिल सकता है.
लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में वो पूरी तरह ग़लत साबित हुईं.
प्रोफ़ेसर वॉलेन बताते हैं, "महिलाओं की सर्जरी आपदा से कम नहीं थी. कुछ महिलाओं में वहां सेन्सेशन पूरी तरह ख़त्म हो गया. लेकिन मैरी को अपनी थ्योरी पर इतना भरोसा था कि उन्होंने ख़ुद भी अपनी सर्जरी करवाई. हालांकि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं मिला."
लेकिन मैरी ने फिर भी हार नहीं मानी, उन्होंने एक बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार अपनी सर्जरी करवाई.
डॉक्टर लॉयड समझाती हैं, "जब आप क्लिटोरिस के आसपास की नसें काट देते हैं तो वहां पर आपकी संवेदशीलता अधिक नहीं होती बल्कि इसका उल्टा हो जाता है क्योंकि आप कई अहम नसें काट देते हैं."
वो कहती हैं, "मैरी मानती थीं कि किसी के साथ सेक्स के दौरान चरमसुख पाने के लिए महिलाओं के लिए सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है."
इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage captionमैरी बोनापार्ट और सिग्मंड फ्रॉयड
सिग्मंड फ्रॉयड से गहरी दोस्ती
तमाम बातों के बावजूद मैरी बोनापार्ट ने हार नहीं मानी. उन्होंने यौन कुंठाओं और सेक्स में परेशानी से जुड़े अपने सवालों के उत्तर तलाशना जारी रखा.
साल 1925 में वो एक चर्चित मनोविश्लेषक से मुलाक़ात करने के लिए विएना गईं, जिनकी पेरिस के मेडिकल सर्कल में काफ़ी चर्चा थी. ये थे सिग्मंड फ्रॉयड.
थॉम्पसन अपने लेख में कहती हैं, "फ्रायड में उन्हें वो मिला जिसकी उन्हें तलाश थी- उन्हें एक नए पिते मिले जिन्हें वो प्यार कर सकती थीं और जिनके साथ वो काम कर सकती थीं."
मैरी बोनापार्ट उनकी मरीज़ बन गईं लेकिन जल्द ही मनोविश्लेषण में मैरी की दिलचस्पी बढ़ती गई और दोनों अच्छे दोस्त बन गए. बाद में मैरी उनकी छात्र बन गईं.
स्विट्ज़रलैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ़ लुज़ेन में मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर रेमी अमोरौक्स कहते हैं, "वो फ्रांस की महिला थीं जिन्होंने मनोविश्लेषण का अध्ययन किया और वो भी फ्रॉयड के साथ."
वो कहते हैं, "फ्रायड को भी उनके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था क्योंकि न तो वो 'ख़तरनाक महिला' थीं और न ही कोई अकादमिक. जब दोनों की मुलाक़ात हुई थी तब फ्रायड सत्तर साल के थे और मैरी एक दिलचस्प, बुद्धिमान और धनी घर की महिला थीं जो उनके साथ बहस कर सकती थीं."
मनोविश्लेषण के क्षेत्र में पेरिस में मैरी बोनापार्ट एक जानामाना नाम बन गई थीं. यहां तक कि राजकुमारी के रूप में वो अपनी आधिकारिक डायरी में अपने मरीज़ों के बारे में लिखने में भी सफल रही थीं.
लेकिन नसीब ने पलटी खायी और जब ऑस्ट्रिया पर जर्मन नाज़ियों ने हमला किया तो उन्होंने फ्रॉयड का जीवन बचाया.
अपने पैसे और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए मैरी ने फ्रायड और उनके परिवार को विएना से निकाल कर लंदन पहुंचाया, जहां उन्होंने अपने जीवन के आख़िरी साल बिताए.
1938 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में सिग्मंड फ्रायड ने बीबीसी को बताया था कि "जब में 82 साल का था मैंने विएना में मौजूद अपना घर छोड़ दिया. उस वक़्त वहां जर्मनी ने हमला किया था. मैं वहां से इंग्लैंड आ गया और उम्मीद कर रहा हूं कि यहां की आज़ाद फ़िज़ा में अपनी आख़िरी सांस लूंगा."
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एक आज़ाद सोच वाली महिला
व्यावसायिक परिपक्वता ने अंततः मैरी बोनापार्ट को महिला कामुकता पर अपने ही सिद्धांत का विरोध करने के लिए प्रेरित किया.
प्रोफ़ेसर वॉलेन कहते हैं, "मैरी ने अपने सिद्धातों को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया."
वो कहते हैं, "1950 में उनकी एक किताब प्रकाशित हुई जिसका नाम था 'फ़ीमेल सेक्शुआलिटी', इसमें उन्होंने पहले किए गए अपने ही अध्ययन के सिद्धांतों को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया."
वो कहते हैं, "इसमें उन्होंने कहा कि सेक्स में महिलाओं के चरमसुख पाने का कोई नाता उनके शरीर की संरचना से नहीं होता, इसका नाता पूरी तरीक़े से मनोवैज्ञानिक है. उस वक़्त वो 25 सालों से मनोविश्लेषण का काम कर रही थीं."
प्रोफ़ेसर वॉलेन मानते हैं कि मैरी बोनापार्ट एक क्रांतिकारी महिला थीं. वो कहते हैं कि "बाद में उन्होंने अपना मन ज़रूर बदल लिया लेकिन मैं मानता हूं कि उनका वास्तविक शोध अपने आप में उल्लेखनीय था."
प्रोफ़ेसर डॉक्टर लॉयड कहती हैं, "मैरी बोनापार्ट आकर्षक व्यक्तित्व की महिला थीं. उनका जीवन दुखों से भरा रहा लेकिन वो मेरे लिए हीरोइन की तरह थीं."
वो कहती हैं, "वो अपने शरीर से ख़ुश नहीं थीं और महिला सेक्शुआलिटी के मामले में अपने वक़्त से कहीं आगे थीं."
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प्रोफ़ेसर रेमी अमोरौक्स ने कई सालों तक पेरिस में मैरी बोनापार्ट के काम का अध्ययन किया है. वो कहते हैं, "वो एक अद्भुत महिला थीं. वो साहित्य के बारे में जानती थीं और राजनीति के बारे में भी. वो शाही गलियारे में भी लोगों से बहुत अच्छे संपर्क रखती थीं. 20वीं सदी के पहले हिस्से से सभी जानेमाने लोगों को जानती थीं."
वो कहते हैं, "फ़ेमिनिस्ट मूवमेन्ट का भी एक अहम चेहरा थीं."
अमोरौक्स कहते हैं, मैरी बोनापार्ट आख़िरकार इस नतीजे पर पहुंचीं, "महिलाओं में कामुकता को देखने का उनका तरीक़ा पितृसत्तात्मक था क्योंकि वो ये मान रही थीं कि चरमसुख पाने का केवल एक ही तरीक़ा हो सकता है."
हालांकि वो ये भी कहते हैं "वो अपनी सोच के स्तर पर स्वतंत्र भी थीं और जटिल भी. हम उन्हें ऐसी महिला के रूप में भी याद कर सकते हैं जिसने सिग्मंड फ्रॉयड को चुनौती दी."